Sawan 2024 : सावन का महीना हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस महीने में भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है और भक्तजन शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, दूध आदि चढ़ाते हैं। लेकिन एक सवाल जो अक्सर मन में उठता है, वह यह है कि शिवलिंग पर तुलसी के पत्ते क्यों नहीं चढ़ाए जाते? इसके पीछे एक पौराणिक कथा है जो भगवान विष्णु के श्राप से जुड़ी हुई है। आइए, इस रहस्य से परदा उठाते हैं और पूरी कथा को विस्तार से जानते हैं।
पौराणिक कथा: वृंदा और जलंधर ( Sawan 2024 )
पौराणिक कथाओं के अनुसार, वृंदा एक परम तपस्विनी और पति-परायण महिला थीं। वह असुरराज जलंधर की पत्नी थीं। जलंधर अत्यंत बलशाली और पराक्रमी असुर था, जिसे उसकी पत्नी वृंदा के पवित्रता और तप का बल प्राप्त था। वृंदा का तप और उनकी पवित्रता ऐसी थी कि उनके पति को कोई भी हानि नहीं पहुंचा सकता था। इसी कारण से देवताओं को जलंधर को परास्त करने में असमर्थता हो रही थी।
भगवान विष्णु की चाल ( Sawan 2024 )
देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने एक युक्ति बनाई और जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के समक्ष उपस्थित हो गए। वृंदा ने उन्हें अपना पति समझकर उनके चरण स्पर्श किए और इस प्रकार उनकी पवित्रता भंग हो गई। इसके परिणामस्वरूप, देवताओं ने जलंधर को युद्ध में परास्त कर दिया और उसका वध कर दिया।
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वृंदा का शाप ( Sawan 2024 )
जब वृंदा को सच्चाई का पता चला, तो उन्हें बहुत क्रोध आया। उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वे पत्थर के बन जाएं। इसी कारण भगवान विष्णु शालिग्राम के रूप में परिवर्तित हो गए। इसके साथ ही वृंदा ने स्वयं को भी अग्नि में समर्पित कर दिया और उनकी राख से तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ।
भगवान शिव और तुलसी (Sawan 2024)
भगवान विष्णु ने वृंदा के तप और पवित्रता का सम्मान करते हुए उन्हें आशीर्वाद दिया कि वे तुलसी के रूप में हमेशा पूजी जाएंगी। लेकिन चूंकि वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दिया था, इसलिए शिवलिंग पर तुलसी के पत्ते चढ़ाना वर्जित हो गया।
धार्मिक मान्यता (Sawan 2024)
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शिवलिंग पर तुलसी के पत्ते चढ़ाने से भगवान शिव का अपमान होता है। यह भी कहा जाता है कि तुलसी का पौधा भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है, इसलिए इसे केवल विष्णु की पूजा में ही प्रयोग किया जाता है।
अन्य पौराणिक संदर्भ (Sawan 2024)
शिवलिंग पर तुलसी के पत्ते न चढ़ाने का एक और संदर्भ यह है कि तुलसी को लक्ष्मी का अवतार माना गया है। लक्ष्मी, भगवान विष्णु की पत्नी हैं और इसलिए तुलसी का पत्ता भगवान शिव को अर्पित नहीं किया जाता। इसके साथ ही, तुलसी की पत्तियां औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं और उन्हें भगवान विष्णु की भोग सामग्री के रूप में उपयोग किया जाता है।
तुलसी के पौधे का महत्व
तुलसी का पौधा भारतीय संस्कृति और आयुर्वेद में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसे घर में लगाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और वातावरण शुद्ध होता है। तुलसी के पत्ते अनेक रोगों के उपचार में उपयोगी होते हैं और इसे स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है। तुलसी को पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक माना गया है और इसे भगवान विष्णु के साथ विशेष रूप से जोड़ा गया है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी तुलसी के पत्ते शिवलिंग पर चढ़ाने का निषेध तर्कसंगत है। तुलसी के पत्तों में ऐसे तत्व होते हैं जो शिवलिंग के पत्थर के साथ प्रतिक्रिया कर सकते हैं और इसे नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसके अलावा, तुलसी के पत्तों में एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण होते हैं, जो शिवलिंग की पूजा के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले जल और दूध के साथ मिलकर रासायनिक प्रतिक्रिया कर सकते हैं।
सावन के महीने में शिवलिंग की पूजा में तुलसी के पत्तों का उपयोग न करना धार्मिक, पौराणिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उचित है। भगवान शिव की पूजा में बेलपत्र, जल, दूध, दही, शहद आदि का प्रयोग किया जाता है और यह उनकी कृपा प्राप्त करने का सर्वोत्तम मार्ग है। शिवलिंग पर तुलसी के पत्ते न चढ़ाने का रहस्य भगवान विष्णु और वृंदा की पौराणिक कथा में निहित है, जो हमें धर्म, संस्कृति और परंपराओं का महत्व समझने में सहायता करती है।