बरसात मे इस ट्रिक से करे खेती , फसल लहलहाने लगेगी , हो जाओगे मालामाल

By Betul Digital Media

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बारिश का मौसम खेती के लिए अनुकूल समय होता है, लेकिन इस समय में खेती करते समय कुछ चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है, जैसे जलभराव, फसलों में रोगों का प्रकोप, और मिट्टी का कटाव। इन चुनौतियों से निपटने के लिए नई तकनीकों और तरीकों का उपयोग करके किसान अपनी फसल की उपज बढ़ा सकते हैं और अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। यहाँ कुछ नई तकनीकों और तरीकों का विवरण दिया गया है जिन्हें अपनाकर किसान बारिश के मौसम में सफलतापूर्वक खेती कर सकते हैं:

1. वाटर हार्वेस्टिंग (Water Harvesting)

बारिश के पानी को संचित करने और उपयोग करने के लिए वाटर हार्वेस्टिंग एक उत्कृष्ट तकनीक है। इसके द्वारा न केवल जल की कमी से बचा जा सकता है, बल्कि सिंचाई के लिए भी इसका उपयोग किया जा सकता है। वाटर हार्वेस्टिंग के लिए तालाब, कुंआ, और बारिश के पानी को जमा करने वाले टैंक बनाए जा सकते हैं।

2. मल्चिंग (Mulching)

मल्चिंग के द्वारा मिट्टी की नमी को बनाए रखने में मदद मिलती है। इसके लिए खेत की सतह पर जैविक या अजैविक पदार्थ जैसे भूसा, पत्तियां, प्लास्टिक शीट आदि बिछाए जाते हैं। यह तकनीक न केवल मिट्टी की नमी को संरक्षित करती है, बल्कि खरपतवारों को भी नियंत्रित करती है और मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती है।

3. जीरो टिलेज (Zero Tillage)

जीरो टिलेज तकनीक के तहत बुवाई के लिए मिट्टी को जोता नहीं जाता है। इसके बजाय, सीधे पुराने फसल के अवशेषों पर नई फसल की बुवाई की जाती है। यह विधि मिट्टी की संरचना को बनाए रखती है, जल संरक्षण में मदद करती है, और लागत को कम करती है।

4. इंटरक्रॉपिंग (Intercropping)

इंटरक्रॉपिंग में एक ही खेत में दो या अधिक फसलों को साथ-साथ उगाया जाता है। यह तकनीक पौधों के बीच संसाधनों का अधिकतम उपयोग करने में मदद करती है और फसलों की उत्पादकता को बढ़ाती है। इसके अलावा, इससे फसलों के बीच प्राकृतिक कीट नियंत्रण भी होता है।

5. वर्टिकल फार्मिंग (Vertical Farming)

वर्टिकल फार्मिंग तकनीक के माध्यम से सीमित स्थान में अधिक उत्पादन किया जा सकता है। इसमें पौधों को ऊर्ध्वाधर संरचनाओं पर उगाया जाता है। यह तकनीक शहरी क्षेत्रों में भी कारगर साबित हो रही है, जहाँ भूमि की कमी होती है।

6. ड्रिप इरिगेशन (Drip Irrigation)

ड्रिप इरिगेशन तकनीक के द्वारा पानी की बूंदों को सीधे पौधों की जड़ों तक पहुँचाया जाता है। यह विधि पानी की बचत करती है और फसलों को आवश्यक मात्रा में पानी प्रदान करती है। ड्रिप इरिगेशन विशेष रूप से सब्जियों और फलों की खेती के लिए उपयोगी होती है।

7. बायोफर्टिलाइजर्स और बायोपेस्टिसाइड्स (Biofertilizers and Biopesticides)

रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के बजाय जैविक उर्वरकों और जैविक कीटनाशकों का उपयोग करने से मिट्टी की गुणवत्ता और पर्यावरण को संरक्षित किया जा सकता है। बायोफर्टिलाइजर्स पौधों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करते हैं और बायोपेस्टिसाइड्स कीटों और रोगों को नियंत्रित करते हैं।

8. संवर्धित किस्मों का चयन (Selection of Improved Varieties)

बारिश के मौसम में बेहतर उपज प्राप्त करने के लिए संवर्धित और उन्नत किस्मों का चयन करना महत्वपूर्ण है। ये किस्में रोगों के प्रति प्रतिरोधक होती हैं और अधिक उपज देती हैं। कृषि विज्ञान केंद्रों से जानकारी प्राप्त करके किसानों को सही किस्मों का चयन करना चाहिए।

बारिश के मौसम में नई तकनीकों और तरीकों को अपनाकर किसान अपनी खेती को अधिक उत्पादक और लाभकारी बना सकते हैं। वाटर हार्वेस्टिंग, मल्चिंग, जीरो टिलेज, इंटरक्रॉपिंग, वर्टिकल फार्मिंग, ड्रिप इरिगेशन, बायोफर्टिलाइजर्स और बायोपेस्टिसाइड्स जैसी तकनीकों का उपयोग करके फसलों की उपज बढ़ाई जा सकती है। इसके साथ ही, सही फसल किस्मों का चयन और उचित प्रबंधन से किसान बारिश के मौसम में भी मालामाल हो सकते हैं।

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